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के लिए इतिहास से छेड़छाड़
-राम पुनियानी
विभिन्न समुदायों
को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करना और हिन्दू समुदाय में नीची जातियों का निम्न
दर्जा बनाए रखना,
हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रमुख एजेंडा है। इसी एजेंडे के तहत, मुस्लिम राजाओं को विदेशी आक्रांताओं के रूप में प्रस्तुत कर उनका
दानवीकरण किया जाता रहा है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने भारत के लोगों को
जबरदस्ती मुसलमान बनाने का प्रयास किया और इसी के नतीजे में, जाति प्रथा अस्तित्व में आई। इसी एजेंडे का दूसरा हिस्सा है आर्यों का
महिमामंडन और हिन्दू पौराणिक कथाओं की इतिहास के रूप में प्रस्तुति। हाल में
ब्राह्मणवादी मूल्यों को बढ़ावा देना और दलितों व ओबीसी को राष्ट्रवादी खेमे में शामिल
करना भी इस एजेंडे में शामिल हो गए हैं।
पिछले साल ओणम
(सितंबर 2016) पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट कर यह
कहा था कि ओणम, विष्णु के पांचवे अवतार वामन के जन्म का
समारोह है। इसी के साथ, आरएसएस के मुखपत्र ‘केसरी’ ने एक लेख छापा जिसमें कहा गया कि पुराणों
और अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों में कहीं यह नहीं कहा गया है कि महाबली को वामन ने
पाताललोक में धकेल दिया था। यह भी कहा गया कि धर्मग्रंथों में कहीं ऐसा वर्णित
नहीं है कि महाबली, हर वर्ष मलयाली
चिंगम माह में धरती पर आते हैं।
यह पटकथा, केरल में ओणम से जुड़ी कथा के एकदम विपरीत है। ओणम, फसल की कटाई का महोत्सव है और यह माना जाता है कि इस दौरान वहां के
लोकप्रिय राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने आते हैं। केरल में ओणम सभी धर्मों के
अनुयायियों का त्योहार बन गया है। भाजपा, इसे विष्णु के वामन
अवतार से जोड़कर, उसे केवल ऊँची जातियों का त्योहार बनाना
चाहती है।
इतिहास को संघ
परिवार द्वारा किस तरह तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, इसका एक उदाहरण है
उत्तरप्रदेश के भाजपा कार्यालय, जिसकी हाल में नवीन
साज-सज्जा की गई है, में टंगा एक
तैलचित्र। एक नज़र देखने पर यह तैलचित्र राजपूत राजा महाराणा प्रताप का लगता है।
परंतु असल में यह 11वीं सदी के एक राजा
सुहैल देव का तैलचित्र है। महाराज सुहैल देव के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना
है। इन्हें पासी और भार, ये दोनों समुदाय
अपना राजा मानते हैं। सुहैल देव, भाजपा के नायकों की
सूची में शामिल कैसे हो गया? उत्तरप्रदेश के
बहराईच में अमित शाह ने सुहैल देव की एक प्रतिमा का अनावरण किया और उस पर लिखी एक
पुस्तक का विमोचन भी किया। सुहैल देव को एक ऐसा राष्ट्रीय नायक बताया जा रहा है
जिसने स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। उसके नाम पर एक नई ट्रेन शुरू की गई है जिसका
नाम ‘सुहैल देव एक्सप्रेस’ है।
इसी महीने (जून 2017), उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह घोषणा की कि लखनऊ के
अंबेडकर पार्क में छत्रपति शाहू, जोतिराव फुले, अंबेडकर, काशीराम व मायावती
के साथ-साथ सुहैल देव की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाएगी। इस पार्क का निर्माण
मायावती सरकार ने करवाया था और सुहैल देव को छोड़कर, अन्य सभी प्रतिमाएं
वहां पहले से ही लगी हुई हैं। अब इस पार्क में अन्य जातियों के नायकों की
प्रतिमाएं भी लगाई जाएंगी। यह कहा जा सकता है कि प्रतिमाएं लगाने के मामले में
मायावती ने एक तरह की अति कर दी थी परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि अंबेडकर पार्क, लोक स्मृति में दलित पहचान को एक सम्मानजनक स्थान देने का प्रयास था। हाल
में किया गया निर्णय, इतिहास के उस
संस्करण का प्रचार करने का प्रयास है, जो हिन्दू
राष्ट्रवादियों को सुहाता है। सुहैल देव के बारे में यह कहा जा रहा है कि उसने
सालार महमूद (गाज़ी मियां) से मुकाबला किया था। गाज़ी मियां,
महमूद गज़नी का भतीजा था, जो इस क्षेत्र में
बसने आया था।
प्रो. बद्रीनारायण
(‘फेसिनेटिंग हिन्दुत्व’, सेज पब्लिकेशंस) के अनुसार, लोकप्रिय आख्यान यह
है कि सुहैल देव ने अपने राज्य में मुसलमानों और दलितों पर घोर अत्याचार किए थे।
उसके दुःखी प्रजाजनों की मांग पर सालार महमूद ने सुहैल देव के साथ युद्ध किया, जिसमें दोनों राजा मारे गए। गाज़ी मियां की दरगाह पर जियारत करने
मुसलमानों के अलावा बड़ी संख्या में हिन्दू भी जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि दरगाह
पर ज़ियारत करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। दरगाह की बगल में एक तालाब है, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि उसमें नहाने से कुष्ठ रोगी ठीक हो जाते
हैं।
इसके विपरीत, आरएसएस और उसके संगी-साथियों द्वारा यह कथा प्रचारित की जा रही है कि
गाज़ी मियां एक विदेशी आक्रांता थे और सुहैल देव ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए
उससे युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। अगस्त 2016 में प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में सुहैल देव का ज़िक्र किया। उन्होंने सुहैल देव को
एक ऐसा राजा बताया जो गोरक्षक था और जो गायों को अपनी सेना के सामने रखकर युद्ध
में भी उनका इस्तेमाल करता था।
जहां आम लोगों के
ज़हन में गाज़ी मियां की छवि सकारात्मक है वहीं भाजपा, सिर्फ हिन्दू नायक
बताकर अलग-अलग तरीकों से सुहैल देव का सम्मान करने की कोशिश कर रही है। सुहैल देव
इस मामले में भाजपा की दोहरी रणनीति है। एक ओर वह उसे इस्लाम के विरूद्ध लड़ने वाला
हिन्दू नायक बता रही है तो दूसरी ओर वह पासी-राजभर समुदायों का एक नया नायक पैदा
करना चाहती है। भाजपा का लक्ष्य यह है कि दलितों की हर उपजाति के अलग-अलग नायक खड़े
कर दिए जाएं - फिर चाहे उन्होंने दलितों की भलाई के कुछ किया हो या नहीं। इसका
उद्देश्य दलित एकता को खंडित करना है और इससे भाजपा के नायकों में एक और राजा जुड़ जाएगा।
हमें यह याद रखना चाहिए कि अंबेडकर पार्क में जिन व्यक्तियों की मूर्तियां लगी हैं, उनमें से कोई भी सामंत नहीं था और ना ही सामंती व्यवस्था का प्रतिपादक
था। इन सभी ने दलित समुदाय को उसकी गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए अलग-अलग तरह से
प्रयास किए। इन सभी ने दलितों की समानता की लड़ाई में भागीदारी की। राजाओं को तो
केवल पहचान की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए सामने लाया जा रहा है।
हिन्दू राष्ट्रवाद के लिए इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है
और इसलिए वह हिन्दू राजाओं का महिमामंडन करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है।
राज्यतंत्रों की शासन व्यवस्था का आज के युग में कोई भी समर्थन नहीं कर सकता।
परंतु संप्रदायवादी राष्ट्रवादियों को सामंती काल के मूल्य प्रिय हैं और वे उन्हें
पुनर्स्थापित करना चाहते हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का यह कथन कि राणा
प्रताप को ‘महान’ बताया जाना चाहिए, इसी रणनीति का भाग है। राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने अब यह
दावा भी कर दिया है कि हल्दी घाटी की लड़ाई में अकबर नहीं बल्कि राणाप्रताप की विजय
हुई थी। पहले तो संघ परिवार केवल इतिहास के तथ्यों के नई व्याख्या करता था। अब वह
तथ्यों को ही बदल रहा है। एरिक हॉब्सबोन ने बिलकुल ठीक ही कहा था कि राष्ट्रवाद के
लिए इतिहास वही है, जो कि नशाखोर के लिए अफीम। (अंग्रेजी से हिन्दी
रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)