From: Jagaran
31 Jan 2013
The threat of communalism
सांप्रदायिकता का खतरा
तीस जनवरी ही वह तारीख है जब एक धर्माध हिंदू ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। उनकी हत्या करने वाले नाथू राम गोडसे को अपने कृत्य को लेकर कोई पछतावा नहीं था। उसने अपने बचाव में पंजाब हाईकोर्ट में गांधी के संदर्भ में जो कुछ कहा था उससे यह साफ हो गया कि उसे अपने कृत्य पर तनिक भी अफसोस नहीं है। भारत को विविधता के अपने मूल्यों को बरकरार रखने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी है। फिर भी उसी तरह का दूसरा समूह संगठित हो रहा है। यह समूह भी दूसरे मजहब के लोगों या पंथनिरपेक्षता पर विश्वास करने वालों का सफाया करने की बात करता है। यह समूह भारत की राजकीय व्यवस्था पर लगातार हमला करता रहा है और मजहब केनाम पर अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाता जा रहा है।
केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच के दौरान पता चला कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आतंकी प्रशिक्षण शिविर चला रहे हैं। उन्होंने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और और मालेगांव विस्फोट का जिक्र किया। यह बयान थोड़ा सनसनी पैदा करने वाला लगता है। मुझे लगता है कि शिंदे को यह बयान ऐसे समय में नहीं देना चाहिए था जब सीमा पर हो रही घटनाओं का असर देश पर पड़ रहा है। इस बयान के लिए उन्होंने जयपुर के कांग्रेस चिंतन शिविर को चुना, वह भी उनकी मंशा को संदेह के घेरे में लाता है। ऐसा लगता है कि उन्होंने ये बातें भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने की नीयत से कहीं। वैसे मुझे उनके आरोपों से कोई शिकायत नहीं, क्योंकि दोनों संगठन पंथरिपेक्षता के सिद्धांत में बाधा खड़ी करने को आमादा हैं, लेकिन शिंदे ने जिन सबूतों के आधार पर यह खुलासा किया उन्हें सामने रखना चाहिए था। फरवरी में संसद सत्र शुरू होने वाला है। इस सत्र में इस मामले पर श्वेतपत्र पेश करना सबसे ठीक रहेगा। ऐसे समय में जब इस्लामी आतंकवाद पहले से ही सरकार के लिए दु:स्वप्न बना हुआ है, हिंदू आतंकवाद ज्यादा बड़ा खतरा हो सकता है, क्योंकि यह बहुसंख्यक समुदाय को भड़काएगा। अल्पसंख्यक समुदाय की सांप्रदायिकता से निपटा जा सकता है, लेकिन बहुसंख्यक समुदाय की सांप्रदायिकता फासीवाद में तब्दील हो सकती है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उसी चिंतन शिविर में इस आरोप को दोहराया कि पाकिस्तान से आने वाले आतंकवाद का जवाब हिंदू राष्ट्रवादी आतंकवाद से देने की बात की जा रही है। यह सही हो सकता है, लेकिन देश में जो हालात बन रहे हैं वह इससे और अधिक बिगड़ेंगे। पाकिस्तान के एक बुद्धिजीवी ने अपनी प्रतिक्रिया ईमेल के जरिये दी है, 'इस बात से कोई इन्कार नहीं कि 26 नवंबर या उसकी तरह भारत में हुए कई आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं, लेकिन इसके साथ ही इस सच्चाई में भी कोई संदेह नहीं कि भारतीय मुसलमान खुद भारतीय सत्ता से लड़ने को मजबूर हैं। भारतीय मुसलमानों के साथ साठ सालों से ज्यादा समय से अन्याय से भरा व्यवहार होता रहा है। अयोध्या ढांचे का गिराया जाना या गुजरात में मुसलमानों की हत्या सिर्फ उदाहरण हैं। दुनिया तेजी से हिंसक हो रही है। पश्चिम के देश बाकी देशों की प्राकृतिक संपदा को हथियाने और अपना राजनीतिक दबदबा कायम करने में लगे हुए हैं। ऐसे में हिंसा से हिंसा पैदा होती है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। माली और अल्जीरिया में फ्रांस की कार्रवाइयों का नतीजा हम देख चुके हैं। यह समझा जा सकता है कि भाजपा की प्रतिक्रिया तीखी रही है। पार्टी ने प्रधानमंत्री से माफी मांगने की मांग की है और देशव्यापी प्रदर्शन का भी आयोजन किया। हालांकि, अयोध्या ढांचा ध्वस्त होने के वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को फिर से पार्टी में लाने के बाद भाजपा के गुस्से में कोई दम नहीं रह गया है। पार्टी को बचाव की मुद्रा में होना चाहिए।
शिंदे के खुलासे ने भले ही कांग्रेस में नंबर दो का दर्जा पाने वाले राहुल गांधी की चमक को धूमिल कर दिया है, लेकिन इससे पार्टीजनों पर कोई अंतर नहीं पड़ता। वे लोग तो राहुल गांधी को राहुलजी कहकर संबोध्ति करने लगे हैं। कांग्रेस में 'जी' का संबोधन आदर और किसी को स्वीकार करने के इजहार के रूप में किया जाता है। राहुल गांधी को महासचिव से उपाध्यक्ष पद पर पदोन्नत कर देने से यह बात साफ नहीं हुई है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार वही होंगे। राहुल ने कहा है कि वह पार्टी को मजबूत करेंगे। यह बात थोड़ी अटपटी लगती है कि उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और वह मिलकर पार्टी को मजबूत करेंगे। वंशवाद में फंसी कांग्रेस कर भी क्या सकती है। उसे तो सोनिया की इच्छा का पालन करना है। मनमोहन सिंह भले ही अहमियत रखते हों, लेकिन असरहीन प्रधानमंत्री बने हुए हैं। सही है कि राहुल ने जयपुर में एक अच्छा और भावनात्मक भाषण दिया। अगर यह भी मान लिया जाए कि इसे लिखा भी उन्होंने खुद ही होगा तो भी उन्होंने कहा क्या? व्यवस्था को पूरी तरह बदलने और भ्रष्टाचार मिटाने की बात करने का कोई मतलब नहीं है। उन्हें पता है कि उनके बहनोई रॉबर्ट वाड्रा हरियाणा में गलत तरीके से जमीन हथियाए हुए हैं। ऐसे में राहुल की बातों को गंभीरता के साथ कैसे लिया जा सकता है?
देश और देश के बाहर के लोग भारत की ज्वलंत समस्याओं पर राहुल की राय जानना चाहते हैं। सिर्फ अच्छी-अच्छी बातें नहीं सुनना चाहते, लेकिन उन्होंने अंतरराष्ट्रीय हालात पर एक शब्द नहीं बोला। सामान्य तौर पर ऐसे विषयों पर प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं होता, लेकिन जब वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं तो इन विषयों पर वह क्या सोचते हैं, यह तो उन्हें बताना होगा। मेरा मानना है कि चुनाव बाद अगर कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनती है तो राहुल गांधी शायद कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे। उन्हें कांग्रेस उपाध्यक्ष बनाए जाने पर सत्ता को जहर के समान बताने वाली सोनिया गांधी मनमोहन सिंह से ही काम चलाना पसंद करेंगी। मनमोहन सिंह जब तक चल सकते हैं, सोनिया उन्हें ही तब तक चलते रहने देना चाहेंगी। राहुल मनमोहन के बाद आएंगे। 2014 का चुनाव पंथनिरपेक्ष और गैर पंथनिरपेक्ष ताकतों के बीच होगा। हालांकि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने से पहले भाजपा को दो बार सोचना पड़ेगा। पहली बात तो यह कि मोदी देश को दो धु्रवों में बांट देंगे। और फिर अगर उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया गया तो भाजपा के लिए सहयोगी दलों को जुटाना मुश्किल हो जाएगा। पार्टी को याद करना चाहिए कि वाजपेयी की पहली सरकार को किस तरह तेरह दिनों के बाद ही इस्तीफा देना पड़ा था। भाजपा से हाथ मिलाने को कोई पार्टी तैयार नहीं थी। इतिहास से सबक नहीं लेने वाले इसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं।
[लेखक कुलदीप नैयर, प्रख्यात स्तंभकार हैं]