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June 12, 2020

Hindi Article-Death of an Elephant: Communalization


केरल में गर्भवती हथिनी की मौत: एक त्रासदी का साम्प्रदायिकीकरण -राम पुनियानी भारत के विविधवर्णी समाज में साम्प्रदायिकता का रंग तेज़ी से घुलता जा रहा है. धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है, उनके विरुद्ध हिंसा की जा रही है और फिर उसे औचित्यपूर्ण ठहराया जा रहा है. हमारे समाज के साम्प्रदायिकीकरण की प्रक्रिया अंग्रेज़ सरकार द्वारा इतिहास के सांप्रदायिक नज़रिए से पुनर्लेखन से हुई थी. अब तो स्थिति यह बन गई है कि हर घटना या त्रासदी को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है. सांप्रदायिक शक्तियां बहुत ताकतवर हैं और अपनी बातों का प्रचार करने के लिए उनके पास एक भारी-भरकम मशीनरी है. हाल ही में हमने देखा कि किस प्रकार कोरोना वायरस के प्रसार के लिए तबलीगी जमात को दोषी ठहरा दिया गया. इस संस्था पर ‘कोरोना जिहाद’ करने और ‘कोरोना बम’ बनाने के आरोप भी लगाये गए. अब एक और त्रासद घटना को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है. गत 27 मई 2020 को केरल के पलक्कड़ जिले में 15 साल की गर्भवती हथिनी सौम्या की त्रासद परिस्थितियों में मौत हो गई. उसने गलती से पटाखों से भरा कोई फल (अनानास या नारियल) खा लिया था. मुंह में पटाखों के फूट जाने से उसके निचले जबड़े में गंभीर चोट आई और अंततः उसकी मौत हो गई. इस मामले के कई पहलू हैं. पटाखों से भरा फल जंगली सूअरों को डराने के लिए रखा गया था. ये सूअर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. फल रखने वाले का उद्देश्य हथिनी को मारना कतई नहीं था. पूर्व केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री मेनका गाँधी ने इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जो ट्वीट किया वह न केवल सांप्रदायिक ज़हर से लबरेज था वरन उसमें तथ्यात्मक भूलें भी थीं. उन्होंने लिखा कि घटना केरल के मुस्लिम-बहुल जिले मल्लापुरम में हुई. “मल्लापुरम आपराधिक घटनाओं, विशेषकर जानवरों के सन्दर्भ में, के लिए जाना जाता है. आज तक वहां शिकारियों और वन्यजीवों को नुकसान पहुँचाने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती और इसलिए वे अपने हरकतों से बाज नहीं आते.” एएनआई को दिए गए अपने वक्तव्य (https://sabrangindia.in/article/malappuram-not-wild-west-madam-maneka-gandhi-open-letter) में उन्होंने मल्लापुरम को देश का सबसे अशांत जिला बताया और कहा कि वहां हर दिन कोई न कोई भयावह घटना होती रहती है. वहां हर किस्म के जानवरों को मारा जाता है और सांप्रदायिक घटनाओं में मनुष्यों की मौत भी आम है. उनके ट्वीट और वक्तव्य मल्लापुरम और केरल का अत्यंत नकारात्मक चित्रण करते हैं और पूरी तरह झूठ पर आधारित हैं. उन्होंने पलक्कड़ - जहाँ यह घटना हुई थी - की जगह मल्लापुरम का नाम क्यों लिया? इसका मुख्य कारण यह था कि मल्लापुरम एक मुस्लिम-बहुल जिला है. इस जिले का गठन ईएमएस नम्बूदरीपाद सरकार की दूसरी पारी में हुआ था और तत्समय भाजपा के पूर्व अवतार भारतीय जनसंघ ने इसका विरोध किया था. तब से से लेकर अब तक देश में अनेक नए जिले बने परन्तु भाजपा ने इनमें से एक का भी विरोध नहीं किया. कुल मिलाकर इस पार्टी को मुस्लिम-बहुल जिला मंज़ूर नहीं है. मेनका ने हाथियों के अवैध शिकार और उनके साथ दुर्व्यवहार के लिए केरल को कटघरे में खड़ा किया. उनसे कुछ हद तक सहमत हुआ जा सकता है क्योंकि केरल में हाथियों का धार्मिक अनुष्ठानों और अन्य कामों में प्रयोग किया जाता है. परन्तु यही अन्य कई राज्यों में भी होता है और इनमें पड़ोसी कर्नाटक भी शामिल है. क्या हम सबको वीरप्पन याद नहीं है जो हाथी दांत की तस्करी के लिए कुख्यात था? परन्तु कर्नाटक के बारे में पूर्व मंत्री ने एक शब्द नहीं कहा. क्यों? क्योंकि वहां उनकी पार्टी की सरकार है. दसियों साल कोशिश करने के बाद भी भाजपा केरल में अपने लिए जगह नहीं बना सकी है जबकि पार्टी के पितृ संगठन आरएसएस का राज्य में ख़ासा प्रभाव है. मल्लापुरम के बारे में मेनका गाँधी जो अन्य बातें कहीं वे भी गलत हैं. इस जिले की अपराध दर, मेनका गाँधी के निर्वाचन क्षेत्र सुल्तानपुर से काफी कम है. जहाँ तक मल्लापुरम में सांप्रदायिक हिंसा या विवादों का सवाल है, एक ही उदाहरण मेनका गाँधी को गलत साबित करने के लिए पर्याप्त है. बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद जब मुंबई, सूरत और भोपाल सहित देश के अनेक शहर जल रहे थे तब मल्लापुरम में शांति थी. जहाँ तक मेनका गाँधी के इस आरोप का सवाल है कि मल्लापुरम में हजारों लड़कियों को मार दिया जाता है, उसके बारे में जितना कम कहा जाए उतना बेहतर है. केरल का लिंगानुपात देश में सबसे अच्छा है और वहां के मुसलमानों में लिंगानुपात हिन्दुओं से भी बेहतर है क्योंकि हिन्दुओं की तुलना में उनमें कन्या भ्रूणहत्या का प्रचलन बहुत कम है. वर्तमान केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अपने विभाग की पूर्व मंत्री के स्वर में स्वर मिलते हुए कहा कि मल्लापुरम में जो कुछ हुआ वह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है. इतने बड़े पद पर होते हुए भी मंत्रीजी को यह भी नहीं पता था कि घटना पलक्कड़ में हुई है, मल्लापुरम में नहीं. उनका इरादा भी शायद मुसलमानों को निशाना बनाना रहा होगा. भाजपा के इन दोनों नेताओं ने इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस घटना ने पशुओं के साथ व्यवहार से जुड़े कई मुद्दों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है. इस मामले में भी भाजपा और उसके साथियों का पाखंड सबसे सामने है. वे गाय को ‘माता’ बताते हैं परन्तु भाजपा-शासित प्रदेशों की कई गौशालाओं में गायों की स्थिति दिल दहलाने वाली है. भाजपा शासनकाल में राजस्थान के हिंगोनिया में एक गौशाला में सैकड़ों गाएं भूख और बीमारियों से मारी गईं थीं (https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/cows-died-of-malnourishment-sickness-at-hingonia-last-year/articleshow/57696871.cms). जहाँ भारत में गौरक्षा के नाम पर लिंचिंग में तेजी से वृद्धि हो रही है वहीं हम बीफ के अग्रणी निर्यातकों में से एक भी हैं. यह भी दिलचस्प है कि बीफ के अनेक बल्कि अधिकांश निर्यातक गैर-मुसलमान हैं. केरल में हथिनी की मौत के मुद्दे का इस्तेमाल विघटनकारी राजनीति को बढ़ावा देने में करने की बजाय जानवरों के इस्तेमाल के सम्बन्ध में ऐसे नियम बनाये जाने की जरूरत है जो उनके प्रति करुणा और प्रेम के भाव से प्रेरित हों. इन दिनों गर्भवती हथिनी और उसके अजन्मे बच्चे के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है. ऐसे में हमें गुजरात दंगों की याद आना स्वाभाविक हैं जिनके दौरान गर्भवती स्त्रियों के गर्भाशय काट कर अजन्मे बच्चों को त्रिशूल पर टांगा गया था. हमें जामिया की एमफिल विद्यार्थी सफूरा ज़रगर की चिंता भी होनी चाहिए. वे गर्भवती हैं और सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने के सिलसिले में जेल में हैं. उन्हें ज़मानत तक नहीं मिल पा रही है. कहाँ है हमारी करुणा? क्या वह केवल केरल के हाथियों के लिए आरक्षित है? (हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)