नेहरू
ने कितना परेशान किया मोदीजी को!
-राम
पुनियानी
भाजपा
ने हाल में लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया। सरसरी निगाह से देखने
पर ही इस दस्तावेज के बारे में दो बातें बहुत स्पष्ट तौर पर उभर कर आतीं हैं। पहली, इसमें
इस बात का कोई विवरण नहीं दिया गया है कि पिछले घोषणापत्र में किए गए कितने वायदों
को वर्तमान सरकार पूरा कर सकी है। दूसरी,
इसमें अति-राष्ट्रवाद की काफी शक्तिशाली
डोज लोगों को पिलाने का प्रयास किया गया है।
अपने
सार्वजनिक भाषणों में भाजपा के शीर्ष नेता,
उनकी सरकार की असफलताओं के लिए भारत
के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहरा रहे हैं। यह तब, जबकि
मोदी, जवाहरलाल
नेहरू की मृत्यु के 50
साल बाद देश के प्रधानमंत्री बने थे। एक आमसभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस महासचिव
प्रियंका गांधी ने कहा,
‘‘उन्हें (नरेन्द्र मोदी को) हमारे
परिवार के सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं देता। वे कहते हैं, नेहरू
ने यह किया, इंदिरा
गांधी ने वह किया,
परंतु आप यह तो बताएं कि आपने पांच
सालों में क्या किया।‘‘
यहां तक कि कूटनीतिक और विदेशी
मामलों में भी सरकार की असफलताओं के लिए नेहरू को दोषी ठहराया जा रहा है!
पुलवामा
और बालाकोट हमलों के बाद,
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद
के मुखिया मौलाना मसूद अजहर पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रस्ताव
प्रस्तुत हुआ। चीन ने इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया। राहुल गांधी ने
प्रधानमंत्री की इस बात के लिए निंदा की कि वे चीन को मसूद अजहर के खिलाफ प्रतिबंध
लगाने के प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए राजी नहीं कर सके। यह एक बहुत ही सामान्य
और औचित्यपूर्ण आलोचना थी। परंतु भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद और अरूण जेटली ने
तुरंत लगभग 70
साल पुरानी घटना की चर्चा शुरू कर दी। प्रसाद ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘‘आज
चीन, संयुक्त
राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं होता यदि आपके परनाना ने भारत की कीमत पर
परिषद की सदस्यता चीन को ‘भेंट‘ न
की होती‘‘।
उन्होंने यह भी कहा कि पंडित नेहरू ने चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता
दिलवाई। इस सिलसिले में उन्होंने शशि थरूर की पुस्तक ‘नेहरूः
द इन्वेंशन ऑफ़ इंडिया‘
को उद्धत किया। यह थरूर की पुस्तक
में दिए गए तर्कों का तोड़ा-मरोड़ा गया संस्करण था।
अपने
राजनैतिक हितों को साधने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को झुठलाने और इतिहास को
तोड़ने-मरोड़ने में भाजपा माहिर है। उसने प्राचीन भारत के इतिहास का तोड़-मरोड़कर यह
सिद्ध करने का प्रयास किया कि आर्य इस देश के मूल निवासी थे। उसने मध्यकालीन
इतिहास को तोड़-मरोड़कर यह साबित करने की कोशिश की कि मुस्लिम शासक मनुष्य के भेष
में दानव थे। अब तो हद ही हो गई है। भाजपा अब पिछले कुछ दशकों के इतिहास को भी
तोड़-मरोड़ रही है। और यह अज्ञानतावश नहीं किया जा रहा है, बल्कि
एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।
संयुक्त
राष्ट्र संघ का गठन,
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ था।
इसकी सुरक्षा परिषद में दुनिया के पांच शक्तिशाली देशों - अमरीका, ब्रिटेन, सोवियत
संघ, फ्रांस
और चीन - को स्थायी सदस्य का दर्जा देते हुए उन्हें किसी भी प्रस्ताव को वीटो करने
का अधिकार दिया गया था। उस समय,
चीन पर च्यांग काई शेक का शासन था
और वह देश रिपब्लिक ऑफ़ चाइना कहा जाता था। फिर, माओ के
नेतृत्व में चीन में क्रांति हुई और च्यांग काई शेक ने भागकर ताईवान में शरण ली।
वे अपने क्षेत्राधिकार की भूमि को रिपब्लिक ऑफ़ चाइना कहते रहे। इस बीच, कम्युनिस्ट
पार्टी ने चीन की मुख्य भूमि पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना की, जिसमें
च्यांग काई शेक के कब्जे वाले ताईवान को छोड़कर, चीन का
संपूर्ण भूभाग शामिल था।
शशि
थरूर ने कई ट्वीट कर सही स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि चीन में सत्ता
परिवर्तन के बाद,
नेहरू ने सुरक्षा परिषद के स्थाई
सदस्यों से अनुरोध किया कि कम्युनिस्ट चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल किया
जाना चाहिए और उसे ताईवान की जगह सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दी जानी चाहिए।
इस सिलसिले में यह सुझाव दिया गया कि चीन की स्थाई सदस्यता भारत को दे दी जाए।
नेहरू को लगा कि यह गलत और चीन के साथ पहले ही हो रहे अन्याय के घाव पर नमक छिड़कने
जैसा होगा। उन्होंने कहा कि रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की जगह पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना
को सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाया जाना चाहिए और यह भी कि भारत को भविष्य में
अपने दम पर सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता मिलनी चाहिए। थरूर ने यह भी लिखा कि
भारत, सुरक्षा
परिषद में चीन का स्थान नहीं ले सकता था क्योंकि उसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के
चार्टर को संशोधित करना पड़ता और अमरीका ऐसा नहीं होने देता।
नेहरू
के सुझाव के काफी समय बाद,
कम्युनिस्ट चीन को रिपब्लिक ऑफ़
चाइना की जगह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दी गई। नेहरू चाहते
थे कि कम्युनिस्ट चीन,
संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बने।
वे यह जानते थे कि अमरीका और सोवियत संघ के परस्पर विरोधाभासी हित हैं। नेहरू की
चीन को स्थाई सदस्यता देने में कोई भूमिका नहीं थी।
इसी
तरह, मोदी
अब कह रहे हैं कि भारत का विभाजन,
कांग्रेस के कारण हुआ। यह आरोप
पिछले कई दशकों का सबसे बड़ा झूठ है। इससे न केवल यह पता चलता है कि मोदी एंड कंपनी, विभाजन
संबंधी तथ्यों से कितनी अनभिज्ञ है बल्कि यह भी कि वह अपनी विश्वदृष्टि के अनुरूप, तथ्यों
को तोड़ने-मरोड़ने में कोई गुरेज नहीं करती। भारत का विभाजन एक त्रासदी थी, जिसके
पीछे थी अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति और सावरकर का द्विराष्ट्र
सिद्धांत, जो
कहता था कि भारत में दो राष्ट्र हैं - मुस्लिम राष्ट्र और हिन्दू राष्ट्र। सावरकर
के इस सिद्धांत को मुस्लिम लीग का पूरा समर्थन मिला जो यह मानती थी कि मुसलमान, सदियों
से अलग राष्ट्र रहे हैं।
नेहरू और कांग्रेस के खिलाफ यह
कुत्सित प्रचार कुछ अज्ञानियों को भ्रमित कर सकता है परंतु हम सभी को ज्ञात है कि
पिछले कुछ दशकों में भारत ने आशातीत प्रगति की है। शिक्षा, विज्ञान, तकनीकी, स्वास्थ्य, औद्योगिकरण, कृषि
इत्यादि में भारत तेजी से आगे बढ़ा है। नेहरू के नेतृत्व में ही भारत की
कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बदली। जवाहरलाल नेहरू, आधुनिक
भारत के निर्माता थे और आईआईटी, एम्स, सीएसआईआर, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र व सार्वजनिक क्षेत्र के
दर्जनों बड़े संस्थान इसका प्रमाण हैं।
नेहरू ने न केवल वैश्विक स्तर पर भारत को स्वीकार्यता और सम्मान दिलवाया वरन्
उन्होंने देश को उस दीन-हीन स्थिति से उबारा जिसमें अंग्रेज उसे छोड़ गए थे। भाजपा
यह अच्छी तरह से जानती है कि नेहरू ने ही आधुनिक, औद्योगिक भारत की नींव रखी थी और वह यह भी जानती है
कि उसे नेहरू की निंदा करने के लिए झूठ का सहारा लेना ही पड़ेगा। और यही वह कर रही
है। (अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण
अमरीश हरदेनिया)