राम पुनियानी
संजय लीला भंसाली की ऐतिहासिक फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान, हाल (जनवरी, 2017) में जयपुर में फिल्म यूनिट पर हमला हुआ। बहाना यह था कि फिल्म में एक स्वप्न दृश्य है, जिसमें मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी और राजपूत राजकुमारी पद्मावती को एक साथ दिखाया गया है। यह हमला ‘करणी सेना’ नामक एक संगठन ने किया, जो राजपूतों के ‘गौरव’ की
रक्षा के लिए काम करता है। उसका मानना था कि यह फिल्म राजपूतों की शान में
गुस्ताखी है। यह दिलचस्प है कि फिल्म की शूटिंग अभी शुरू ही हुई है और
करणी सेना के पास फिल्म की पटकथा उपलब्ध नहीं है। इस मामले में राज्य सरकार
चुप्पी साधे रही और उसने इस हमले की निंदा करने तक की जरुरत नहीं समझी।
हमले के बाद, भंसाली ने शूटिंग बंद कर दी और घोषणा की कि अब वे राजस्थान में कभी शूटिंग नहीं करेंगे। इसके बाद कुछ भाजपा-विहिप
नेताओं ने यह धमकी दी कि वे देश में कहीं भी इस फिल्म की शूटिंग नहीं होने
देंगे। इसी करणी सेना ने कुछ समय पहले उन सिनेमाघरों पर हमले किये थे, जहाँ ‘‘जोधा अकबर’’ फिल्म दिखाई जा रही थी। यह फिल्म एक अन्य राजपूत राजकुमारी जोधाबाई पर आधारित थी।
अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती की कथा कपोल-कल्पित बताई जाती है, यद्यपि कुछ लोगों का मानना है कि चूँकि अलाउद्दीन खिलजी ऐतिहासिक चरित्र था, इसलिए यह कथा भी सही होनी चाहिए। सच यह है कि पद्मावती और उनके जौहर की कहानी खिलजी के शासनकाल के लगभग दो सदियों बाद, 16वीं
सदी में सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी की एक रचना का भाग है। यह कहानी
चित्तौड़ के शासक रतन सिंह और काल्पनिक सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्मावती
की प्रेमकथा पर आधारित है। पद्मावती का तोता हीरामन, रतन सिंह को राजकुमारी की सुंदरता के बारे में बताता है। हीरामन, रतन सिंह को पद्मावती तक पहुंचने का रास्ता भी बताता है और फिर दोनों प्रेमी एक हो जाते हैं। इस कहानी के अनुसार, रतन
सिंह को राघव पंडित नामक एक व्यक्ति धोखा दे देता है और उस पर कुंभलनेर का
राजा हमला कर देता है। इस हमले में रतन सिंह मारा जाता है। कुंभलनेर का
राजा भी पद्मावती को पाना चाहता है। खिलजी भी राजकुमारी के सौन्दर्य पर
मोहित है और उसे पाने के लिए रतन सिंह के राज्य पर हमला करता है परंतु
खिलजी के वहां पहुंचने के पहले ही पद्मावती किले की अन्य महिलाओं के साथ
जौहर कर लेती है। जिस सूफी संत ने यह अमर प्रेम कहानी लिखी थी, उसने इस कथा को सत्ता की निरर्थकता और मनुष्य की आत्मा की मुक्ति की चाहत के रूपक बतौर प्रस्तुत किया था।
समय के साथ, पद्मावती, राजपूती शान का प्रतीक बन गई और खिलजी, एक हवसी मुसलमान आक्रांता का। विभिन्न समुदाय, अतीत को किस रूप में देखते हैं, यह
काफी हद तक वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित होता है। इस कहानी
का उपयोग इतिहास को सांप्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने के लिए किया जा
रहा है, जिसमें राजाओं को अपने-अपने
धर्मों के प्रतिनिधि के रूप में दिखाया जाता है। सच यह है कि राजाओं का
उद्देश्य केवल अपने साम्राज्य का विस्तार करना रहता था। वर्तमान समय में इस
तथ्य को भुलाकर, राजाओं
द्वारा किए गए युद्धों को सांप्रदायिक चश्मे से देखा जा रहा है। यह बताया
जा रहा है कि राजपूतों ने मुस्लिम आक्रांताओं के खिलाफ बहादुरी से युद्ध
किया और ‘‘अपनी महिलाओं’’ के सम्मान की रक्षा की। इन महिलाओं ने मुस्लिम राजाओं के हाथों ‘अपवित्र’ होने से मर जाना बेहतर समझा। इस कहानी का इस रूप में प्रस्तुतीकरण, इतिहास
को झुठलाने का प्रयास है। इतिहास में राजपूतों और मुगल राजाओं के गठबंधन
के कई उदाहरण हैं और कई बार इस तरह के गठबंधन बनाने के लिए विवाहों का
प्रयोग भी किया जाता था। ‘‘जोधा अकबर’’ फिल्म भी एक मुस्लिम राजा और हिन्दू राजकुमारी की कथा पर आधारित है।
समस्या
यह है कि हम इतिहास और कल्पना में भेद नहीं कर पा रहे हैं। भारत में मुगल
राजाओं ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के प्रयास में युद्ध और गठबंधन
दोनों किए। अकबर और राणा प्रताप में लंबे समय तक युद्ध चला परंतु राणा
प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने अकबर के पुत्र जहांगीर के साथ गठबंधन कर लिया।
मुगल प्रशासन में कई राजपूत उच्च पदों पर थे। मध्यकालीन भारत में मुगल और
राजपूतों के परस्पर संबंधों के कई उदाहरण हैं।
राजपूत राजकुमारियों के बारे में दो तरह की धारणाएं प्रचलित हैं। पहली, जिस पर अधिकांश लोग विश्वास करते हैं, वह यह है कि इन राजकुमारियों ने अपने ‘सम्मान की रक्षा’ के लिए अपने जीवन की बलि दे दी और दूसरी यह कि राजघरानों ने अपनी-अपनी सत्ता को मजबूत करने के प्रयास में परस्पर विवाह किए। पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोग ‘‘अपनी पुत्री किसी को देने’’ को अपने समुदाय की हार के रूप में देखते हैं और इसी कारण इतिहास के सच को भुलाकर जौहर का महिमामंडन किया जा रहा है। ‘‘जोधा अकबर’’ फिल्म
बताती है कि किस तरह दो शासक परिवारों ने अपने गठबंधन को मज़बूती देने के
लिए एक राजपूत राजकुमारी का विवाह मुगल बादशाह से कर दिया। आज समुदाय के
सम्मान की जो धारणाएं प्रचलित हो गई हैं, उनके कारण इन ऐतिहासिक तथ्यों को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है।
‘‘पद्मावती’’ फिल्म
का मामला इससे भी एक कदम आगे बढ़कर है। राजपूतों के गौरव के स्वनियुक्त
रक्षकों ने केवल अफवाह के आधार पर फिल्म यूनिट पर हमला कर दिया। हम नहीं
जानते कि फिल्म के निदेशक फिल्म में क्या दिखाना चाहते हैं परंतु करणी सेना
को एक स्वप्न के दृश्य में भी राजपूत राजकुमारी और मुसलमान बादशाह का साथ
दिखाया जाना मंजूर नहीं था। इस तरह की असहिष्णुता बढ़ती जा रही है।
दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी, कलात्मक
स्वतंत्रता पर हमले कर रहे हैं और हिन्दुत्व की राजनीति उन्हें बढ़ावा दे
रही है। फिल्म निर्माताओं और निदेशकों को इस तरह की ताकतों की ज्यादतियों
का शिकार होना पड़ रहा है। हमारी सरकार, जिसे अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करनी चाहिए, मूक
होकर इस तरह की घटनाओं को देख रही है। इससे यह स्पष्ट है कि हिन्दुत्व की
विचारधारा में कलाकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता के लिए कोई जगह नहीं है और
ना ही वह अतीत को किसी भी ऐसे रूप में दिखाए जाने के पक्ष में है, जो उसे नहीं भाता। हमारा राज्य, प्रजातंत्र की कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)