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April 15, 2015

ज़ाकिर हुसैन मक़बरा से राजघाट तक पदयात्रा 19 अप्रैल 2015

इधर आ सितमगर हुनर आज़माये तू तीर आज़मा हम जिगर आज़माये

ज़ाकिर हुसैन मक़बरा से राजघाट तक पदयात्रा

(1984 सिख और 1987 हाशिमपुरा क़त्ल ए आम पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी द्वारा दुबारा जाँच की मांग को लेकर)

19 अप्रैल 2015 | 9 बज सुबह

शुरुआत ज़ाकिर हुसैन मक़बरा (जामिया मिल्लिया इस्लामिया) से हज़रत निजामुद्दीन - पुराना क़िला - आईटीओ पुलिस हेड क्वार्टर होते हुए राजघाट पर समापन



अज़ीज़ साथियो,

हाशिमपुरा हत्या कांड मे पीएसी द्वरा 42 मुस्लिम की हत्या के बाद उन्हे नाले मे बहा देने के मामले मे बीस साल बाद 16 पीएसी अभियुक्तो को दिल्ली की कोर्ट ने सबूत के अभाव मे छोड़ दिया है, 28 साल चले इस केस मे समूचे देश की निगाहे टिकी हुई थी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाबरी मस्जिद में पूजा के लिए ताला खोले जाने के बाद पुरे देश में एहतेजाज का दौर चल रहा था हमेशा की तरह शांत क्रांतिकारियों की ज़मीन मेरठ में धरने प्रदर्शन का दौर चल रहा था जहा मस्जिद के सामने कुछ युवक प्रदर्शन करने को निकले थे, तनाव बढ़ता देख कर्फ्यू लगा दिया गया उस रात मेरठ मे फ़ौज ने फ़ौज ने मेजर पठानिया के नेतृत्व में 42 बुनकर नौजवानो को अरेस्ट कर पीएसी के हवाले किया युवको को गिरफ्तार कर ट्रक में भरा और 40 युवको को पीएसी के जवानो ने गोली से भून कर मुरादनगर की गंगा कैनाल में बहा दिया जो आज़ादी के बाद से आजतक की सबसे बड़ा एक्स्ट्रा जुडिशियल क़त्ले आम बना! सीनियर जर्नलिस्ट निखिल चक्रवर्ती, जस्टिस राजेन्द्र सच्चर, प्रो. ए एम खुसरो, बदरुद्दीन तय्यब जी, कुलदीप नय्यर और आई के गुजराल जो बाद में प्रधानमंत्री बने अगुवाई वाली रिपोर्ट में दावा किया गया कि यह क़त्ल ठीक वैसे ही था जैसे नाज़ियों ने यहूदियों की हत्या की थी इस हत्या के पीछे मंशा यह थी की अल्पसंख्यक समाज को आतंकित किया जा सके, कमिटी ने डिमांड की सरकार को पीएसी जवानो को प्रॉसीक्यूट करना चाहिए जिन्होंने वर्दी को दागदार किया और उनकी ऐसी हरकतों के लिए सख्त सजा मिले! उत्तर प्रदेश सरकार ने हाशिमपुरा हत्या कांड पर 8 साल बाद सीबीसीआईडी द्वारा जाँच बिठाई और फरवरी 1994 में 66 विभिन्न रैंक के पीएसी जवानो की निशानदेही की गयी, प्रदेश सरकार ने लोअर रैंक के 19 अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज कर ग़ाज़ियाबाद सीजेएम कोर्ट के समक्ष केस शरू हुआ! 13 मार्च को हाई कोर्ट में काउंटर एफिडेविट देते हुए सीबीसीआईडी ने माना की ट्रक नंबर URU 1693 जिसमे मुस्लिम युवको को डिटेन कर माकनपुर गाव के पास हिंडन कैनाल पर ले जाकर शूट किया गया और एफिडेविट की पैरा 10 में कहा "यह बता दी गया की मानवाधिकारों का उल्लंघन डिनाइड नहीं किया जा सकता! इस घटना के बावजूद पीएसी जवानो को अरेस्ट नहीं किया गया, 24 मई 2007 को पुलिस मुख्यालय से मिली आरटीआई की जानकारी कहती है की सभी आरोपी पुलिस कर्मी नौकरी पर तैनात है और सालो गुज़र जाने के बाद "वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट" में पीएसी जवानो को उन्हें साफ क्लीन चिट दी जाती रही! सीबीसीआईडी जाँच में सब इन्स्पेक्टर वीरेंद्र, इंचार्ज लिंक रोड पुलिस थाना ने बताया की सुचना पाते ही हिंडन कैनाल पहुंचे जहा उन्हें पीएसी ट्रक का पीछा किया जोकि 41 पीएसी वाहिनी कैम्प में पंहुचा, साथ में एसपी विभूति नारायण राय, नसीम ज़ैदी डीएम (इस समय के इलेक्शन कमिश्नर) भी पहुंचे लेकिन घुसने की इजाज़त नही दी गयी! उस समय ग़ाज़ियाबाद के एसपी विभूति नारायण राय जिन्होंने पीएसी के खिलाफ मुक़दमा दर्ज किया बताते है की “यह कथा एक लंबा और यातनादायक प्रतीक्षा का वृतांत है जिसमें भारतीय राज्य और अल्पसंख्यकों के रिश्ते, पुलिस का गैर पेशेवराना रवैया और घिसट घिसट कर चलने वाली उबाऊ न्यायिक प्रणाली जैसे मुद्दे जुडे हुयें हैं. मैंने 22 मई 1987 को जो मुकदमें गाजियाबाद के थाना लिंक रोड और मुरादनगर पर दर्ज कराये थे वे पिछले 21 वर्षों से विभिन्न बाधाओं से टकराते हुये अभी भी अदालत में चल रहें हैं और अपनी तार्किक परिणति की प्रतीक्षा कर रहें हैं”. विभूति नारायण ने बताया की पुलिस बल का काम नागरिको की रक्षा करना है न की हिंदुत्व के एजेंडे को नाफ़िज़ करना! पीएसी जवानो को न्यायलय के समक्ष पेश होने के लिए 1994 और 2000 के बीच 23 वारंट और 1997 से 2000 में 17 नॉन बेलेबल वारंट जारी किये गए लेकिन अभियुक्त कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुए और 2000 में 16 अभियुक्त ने जन दबाओ में सरेंडर किया और जल्द बेल पर छूट गए, सुप्रीम कोर्ट में विक्टिम्स परिवारो ने याचिका दायर कर केस 2002 में दिल्ली ट्रांसफर हुआ लेकिन प्रदेश सरकार ने 2004 तक स्पेशल प्रॉसिक्यूटर देने में देरी की और 2006 में सभी अभियुक्तो के खिलाफ भारतीय दंड संहिता 302/ 120B/ 307/ 201/ 149/ 364/ 148/ 147 के तहत आरोप तय हुए और जुलाई में ट्रायल शुरू हुए और शनिवार 22 मार्च को अडिशनल सेशन जज संजय जिंदल ने 16 पीएसी जवानो को यह कहते हुए की प्रॉसिक्यूशन पुलिसमैन की शिनाख्त साबित नहीं कर सका, और 16 अभियुक्त रिहा हो गए!

आउटलुक में छपी गोपनीय रिपोर्ट बताती है की पीएमओ को भेजी रिपोर्ट जिसमे फ़ौज के मेजर पठानिया और अन्य अफसरों के रोल का ज़िक्र था उस समय प्रधमनत्री राजीव गांधी के कार्यालय ने उन्हें बचा लिया कोर्ट के समक्ष पेश होने के ऑर्डर को मेजर पठानिया जैसे लोगो ने कोई तरजीह नहीं दी, बहुत साफ़ है कांग्रेस के उस समय के गृह मंत्री पी चिदंबरम जिन्होंने क़त्ल ए आम का हुक्म दिया. उत्तर प्रदेश में कई बार समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार आती रही लेकिन सभी ने सीबीसीआईडी की जाँच में पीएसी के बड़े प्लेयर्स को बचाने का काम किया है जिसके चलते इस जाँच की बुनियाद पर किसी फैसले की उम्मीद की भी नहीं जा सकती थी, ठीक इसी तरह 1984 सिख क़त्ल ए आम भी एक के बाद एक मुजरिम बरी होकर पांच सितारा राजनीती कर रहे है और इन्साफ सड़क पर दम तोड़ रहा है बहुत साफ़ है अकलियत इनके निशाने पर है दिल्ली में अनगिनत चर्च की तोड़ फोड़ बिना किसी सरकारी संरक्षण के नहीं हो सकता है था तंज़ीम ए इंसाफ दिल्ली प्रदेश दीगर मुख्य जनसंगठन के साथ 19 अप्रैल को सुबह 9 बजे जामिया मिल्लिया में स्थित ज़ाकिर हुसैन मक़बरे से राजघाट तक पदयात्रा कर इन मुद्दो को उठायेगे.

हमारी मांग है कि 1984 सिख और 1987 हाशिमपुरा क़त्ल ए आम पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी की जाँच बिठाकर फ़ौज, पुलिस और गृह मंत्री पी चिदंबरम के रोल की निस्पक्ष जाँच हो और दिल्ली और देश में चर्चो पर हमले के खिलाफ नरेंद्र मोदी चुप्पी तोड़े और संरक्षण देना बंद करे!

मुल्क के सेकुलर पार्टियो/ जनसंगठनो से अपील किया जाता है की वह इस क़दम का समर्थन करे और और पदयात्रा में सहभागी बने!

आप सबका,

अमीक़ जामेई

कन्वीनर-तंज़ीम ए इन्साफ दिल्ली प्रदेश