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April 09, 2014

कवि विष्णु नागर की कविता - ' बेचारों का हिन्दू राष्ट्र'

कवि विष्णु नागर की कविता - ' बेचारों का हिन्दू राष्ट्र'

उन्होंने मारे
और और मारे
और और और मारे लोग
उन्होंने मारने में पचास साल लगा दिये
फिर भी बना नहीं, हाँ जी बन ही नहीं सका, बेचारों का हिन्दू राष्ट्र।

उन्होंने रथ चलाये और घर जलाये
उन्होंने मस्जिदें तोड़ीं और मन्दिर बनाये
उन्होंने सरकारें तोड़ीं और सरकारें बनायीं
उन्होंने साधु वेश धरा,
उन्होंने राष्ट्रवाद के प्रदर्शन की तमाम बाजियां जीत लीं
उन्होंने नैतिकता का शंख फूंका
उन्होंने मन्दिरों में महाआरतियां कीं
उन्होंने हत्याकांडो को शौर्य दिवस के रूप में मनाया
उन्होंने झूठ के एक से एक शानदार महल खड़े किए
उन्होंने भावनाओं की गंगाएं यमुनाएं और यहाँ तक कि सरस्वतियां तक बहाकर दिखा दीं
उन्होंने धोखे की सभी प्रतियोगिताएं जीत लीं
मगर बना नहीं, हाँ जी बन ही नहीं सका, बेचारों का हिन्दू राष्ट्र ।

उन्होंने भगतसिंह की बगल में हेडगेवार को बैठाया
उन्होंने महात्मा गांधी के पास गोलवलकर के लिए जगह बना दी
उन्होंने बाबा साहेब अम्बेडकर के पास गावतकिया लगा कर
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए स्थान बना दिया
उन्होंने विवेकानंद को झपटा, सुभाष चंद्र बोस को लपका
उन्होंने कबीर को पटका, नेहरू को दिया क़रारा झटका,
मगर बना नहीं, हाँ जी बन ही नहीं सका, बेचारों का हिन्दू राष्ट्र।

बताते हैं अब वे हिन्दू राष्ट्र बनाने का ग्लोबल टेंडर निकालेंगे
अटलबिहारी भी उनसे सहमत हैं कि हां ,
ये हुई न बात
ठीक इसी तरह बनेगा हमारा हिन्दू राष्ट्र।
-विष्णु नागर