Resources for all concerned with culture of authoritarianism in society, banalisation of communalism, (also chauvinism, parochialism and identity politics) rise of the far right in India (and with occasional information on other countries of South Asia and beyond)
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March 27, 2020
Hindi Article -Fighting with Corona Virus-No place for blind faith
कोरोना से लड़ाई में अंधश्रद्धा के लिए कोई जगह नहीं
-राम पुनियानी
इस समय (मार्च 2020) पूरी दुनिया, कोविड -19 वैश्विक महामारी से मुकाबला करने में जुटी है. चीन से शुरू हुई यह जानलेवा बीमारी विश्व के लगभग सभी देशों में फैल गई है. अपनी आबादी और आकार के चलते भारत के लिए इस बीमारी से लड़ना एक बड़ी चुनौती है. इस सिलसिले में कई कदम उठाए जा चुके हैं, कुछ उठाए जा रहे हैं और कुछ आगे भी उठाए जाएंगे. परंतु इस लड़ाई को और मुश्किल बना रहे हैं सत्ताधारी दल और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा इस बीमारी के इलाज के संबंध में किए जा रहे अजीबोगरीब दावे. ऐसे दावे करने वालों की उनकी खोखली मान्यताओं में जुनून की हद तक आस्था होती है और उनके दावों को तार्किकता की कसौटी पर कसने वाले उनके दुश्मन बन जाते हैं. डा. नरेद्र दाभोलकर, गोविंद पंसारे और एम. एम. कलबुर्गी की हत्या इसी का सुबूत हैं. इस तरह के तत्वों को सम्प्रदायवादी राष्ट्रवाद के उदय से बढ़ावा मिल रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार 22 मार्च 2020 को पूरे देश में जनता कर्फ्यू का आव्हान किया था. यह आव्हान भी किया गया था कि इसी दिन शाम पांच बजे लोग डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की प्रशंसा स्वरूप और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के लिए अपने घरों की बालकनियों में निकलकर थालियां व अन्य बर्तन बजाएं. इस आव्हान में कुछ भी गलत नहीं था परंतु कई स्थानों पर इसे एक दूसरा ही रंग दे दिया गया. जुलूस निकाले गए, जिनमें भाग ले रहे लोग शंख फूंक रहे थे, बर्तन पीट रहे थे और तालियां बजा रहे थे. जाहिर है कि इस तरह के जुलूसों से जनता कर्फ्यू के मूल उद्देश्य को ही पलीता लग गया. यह सब होने का एक कारण था यह विश्वास कि शोर मचाने से वायरस और बैक्टीरिया मर जाते हैं. महाराष्ट्र भाजपा की एक नेता शायना एनसी ने टवीट् कर पुराणों के हवाले से यह दावा किया कि शंख की ध्वनि, बैक्टीरिया और वायरस के लिए काल होती है.
इसी तरह स्वामी चक्रपाणी महाराज ने गौमूत्र पार्टी का आयोजन किया जिसमें सभी मेहमानों को गौमूत्र परोसा गया. और उन लोगों ने गौमूत्र पिया भी क्योंकि उनका यह विश्वास था कि इससे कोरोना वायरस से उनकी रक्षा होगी. एक अन्य भाजपा नेता द्वारा आयोजित इसी तरह की पार्टी में गौमूत्र सेवन करने वाला एक मेहमान बीमार पड़ गया. असम से भाजपा विधायक सुमन हरिप्रिया ने कोरोना से लड़ाई में गोबर की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला.
यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि गौमूत्र, गोबर आदि के औषधि के रूप में इस्तेमाल की वकालत करने वाले सभी लोग भाजपा की विचारधारा से जुड़े हुए हैं. गौमूत्र के विलक्षण गुणों के बारे में भारतीयों को सबसे पहले सन् 1998 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद पता चला. प्रधानमंत्री मोदी के एक निकट सहयोगी, गुजरात के शंकरभाई वेगड़ का दावा है कि गौमूत्र के सेवन के कारण ही वे 76 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह स्वस्थ हैं. मालेगांव बम धमाकों की आरोपी और भोपाल से भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के अनुसार उन्हें स्तन कैंसर था जो गौमूत्र सेवन से ठीक हो गया. यह अलग बात है कि उनके डाक्टर के अनुसार उनकी तीन सर्जरी हुईं थीं.
क्या यह मानने का कोई तार्किक कारण है कि गौमूत्र से बीमारियां ठीक हो सकती हैं? भारत सरकार ने गौमूत्र और पंचगव्य (गोबर, गौमूत्र, दूध, दही और घी का मिश्रण) पर रिसर्च के लिए एक बड़ी धनराशि आवंटित की है. कई केन्द्रीय शोध संस्थान, गौ-उत्पादों और भारतीय गाय की विशेषताओं पर शोध कर रहे हैं.
चिकित्सा विज्ञान में किसी भी दवा की प्रभावोत्पादकता के परीक्षण के लिए जैव रासायिनक अध्ययन किए जाते हैं, क्लीनिकल ट्रायल होती हैं और दवा के प्रचलन में आ जाने के बाद भी लगातार उसके प्रभाव का अध्ययन और आंकलन जारी रहता है. गौ उत्पादों के बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं वे केवल और केवल आस्था पर आधारित हैं. उनके पीछे न तो कोई वैज्ञानिक तर्क है और ना ही कोई वैज्ञानिक अध्ययन. जहां तक गौमूत्र का सवाल है अन्य जानवरों के मूत्र की तरह उसमें भी वे ही तत्व होते हैं जिन्हें शरीर अनुपयोगी या हानिकारक मानकर उत्सर्जित कर देता है. गौमूत्र में लगभग 90 प्रतिशत पानी होता है. इसके अलावा उसमें यूरिया, क्रियेटेनिन, सल्फेट और फास्फेट इत्यादि होते हैं. गौमूत्र के चिकित्सकीय गुणों को साबित करने के लिए कोई क्लीनिकल ट्रायल नहीं किए गए हैं. ये सारे दावे आस्था और विश्वास पर आधारित हैं. कुछ तत्व केवल अपनी विचारधारा को दूसरों पर लादने के लिए गौमूत्र के संबंध में बेसिरपैर के दावे कर रहे हैं.
दरअसल गौमूत्र, गोबर आदि का महिमामंडन, हिन्दू राष्ट्रवाद की परियोजना का हिस्सा है. हिन्दू राष्ट्रवादी देश पर लैंगिक और जातिगत ऊँचनीच पर आधारित सोच लादना चाहते हैं. इसीलिए यह दावा भी किया जाता है कि प्राचीन भारत ने हजारों वर्ष पूर्व वे सारी वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल कर लीं थीं जो आधुनिक दुनिया ने पिछले सौ-दो सौ वर्षों में हासिल की हैं. प्राचीन भारत में विमान थे, टेलीविजन था, इंटरनेट था और प्लास्टिक सर्जरी भी होती थी. संघ का एक अनुषांगिक संगठन ‘विज्ञान भारती’ पौराणिक साहित्य में आधुनिक विज्ञान को ढूढ़ने पर आमादा है. इस एजेंडे का उद्देश्य है प्राचीन भारत को स्वर्णयुग के रूप में प्रस्तुत करना और पारंपरिक हिन्दू मूल्यों की सर्वोच्चता स्थापित करना.
हिन्दुत्ववादी गाय का प्रयोग दो ढ़ंग से कर रहे हैं - एक ओर गाय के नाम पर लिंचिंग की जा रही है तो दूसरी ओर गौमूत्र और गोबर को चमत्कारिक दवा के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. बाबा रामदेव का पतंजलि संस्थान गौ-उत्पादों पर आधारित कई तरह की दवाईयों का उत्पादन कर रहा है और नागपुर में गौविज्ञान अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई है.
कोरोना जैसी महामारी से मुकाबला करने के लिए सरकार और समाज दोनों को कठिन प्रयास करने होंगे. इस लड़ाई में अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के लिए कोई जगह नहीं हो सकती. (हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)