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October 05, 2017

Hindi Article-Can Science Survive the onslaught of blind faith?


क्या विज्ञान अंधश्रृद्धा के हमले के आगे ठहर पाएगा राम पुनियानी ‘‘विद्यार्थियों को आखिर यह क्यों नहीं सिखाया जाता कि राईट बंधुओं द्वारा हवाईजहाज के आविष्कार के बहुत पहले, शिवकर बापूजी तालपड़े नामक व्यक्ति ने हवाईजहाज का निर्माण कर लिया था? इस व्यक्ति ने राईट बंधुओं से आठ वर्ष पूर्व हवाईजहाज उड़ा कर दिखा दिया था। क्या आईआईटी के हमारे विद्यार्थियों को यह बताया जाता है? अगर नहीं तो यह बताया जाना चाहिए।’’ ये केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह के अमृत वचन हैं जो उन्होंने एक पुरस्कार वितरण समारोह को संबोधित करते हुए उच्चारित किए। इस तरह की बातों के अतिरिक्त, ऐसी नीतियां भी लागू की जा रही हैं जो विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में हमारे देश में शोध और शिक्षण की दिशा पर विपरीत प्रभाव डाल रही हैं। कुछ समय पूर्व, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री हर्षवर्धन ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर उससे कहा था कि वह ‘पंचगव्य के लाभों पर शोध करे और उसके प्रयोग को बढ़ावा दे। पंचगव्य, गौमूत्र, गोबर, दूध, दही और घी का मिश्रण होता है। पंचगव्य पर शोध के लिए आईआईटी दिल्ली को नोडल संस्थान नियुक्त किया गया है। ऐसी खबरे हैं कि मध्यप्रदेश सरकार अस्पतालों में एस्ट्रो ओपीडी (ज्योतिष बाह्य रोगी विभाग) स्थापित करने जा रही है जहां ज्योतिषी मरीजों को यह बताएंगे कि उन्हें कौनसी बीमारी है। यह पुनीत कार्य, राज्य द्वारा स्थापित एवं पोषित एक संस्थान के जरिए किया जाएगा। उत्तराखंड सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष विभाग के सहयोग से जादुई संजीवनी बूटी की तलाश करने की एक परियोजना शुरू की है। संजीवनी बूटी का ज़िक्र रामायण में है। जब लक्ष्मण, रावण से युद्ध के दौरान बेहोश हो गए तब हनुमान को यह बूटी लाने भेजा गया। चूंकि वे उस बूटी की पहचान नहीं कर पा रहे थे इसलिए वे उस पूरे पहाड़ को, जिस पर वह उगी थी, उखाड़ कर ले आए। प्रतिष्ठित आईआईटी खड़कपुर अपने पूर्वस्नातक पाठ्यक्रम में वास्तुशास्त्र को शामिल करने जा रहा है। यहां एक वास्तुशास्त्र केन्द्र भी है जो लोगों को यह सलाह देता है कि वे बुरी नज़र से बचने के लिए अपने घरों के सामने भगवान गणेश और हनुमान की मूर्तियां लगवाएं। ये नीतियां, संघ-प्रशिक्षित भाजपा नेताओं की विज्ञान की समझ को उजागर करती हैं। कुछ वर्ष पहले, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुंबई के एक आधुनिक अस्पताल का उद्घाटन करते हुए अपने श्रोताओं को यह याद दिलाया कि प्राचीन भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में कितनी जबरदस्त प्रगति की थी। ‘‘एक समय हमारे देश ने चिकित्सा विज्ञान में जो प्रगति की थी, उस पर हम सभी को गर्व करना चाहिए। हम सबने महाभारत में कर्ण के बारे में पढ़ा है। महाभारत में यह कहा गया है कि कर्ण अपनी मां के गर्भ से पैदा नहीं हुए थे। इसका अर्थ यह है कि उस समय अनुवांशिकी विज्ञान रहा होगा, तभी कर्ण अपनी मां के गर्भ से बाहर पैदा हो सके...हम सब भगवान गणेश की पूजा करते हैं। उस समय शायद कोई प्लास्टिक सर्जन रहा होगा जिसने हाथी के सिर को मनुष्य के शरीर पर लगा दिया।’’ ये काल्पनिक और हास्यास्पद बातें धीरे-धीरे स्कूली पाठ्यपुस्तकों में भी जगह पा रही हैं। यह मुख्यतः भाजपा-शासित राज्यों में हो रहा है। श्री दीनानाथ बत्रा नामक एक सज्जन की पुस्तक ‘‘तेजोमय भारत’’ इसका उदाहरण है। पुस्तक, विद्यार्थियों को बताती है कि ‘‘अमरीका स्टेमसेल में शोध का अगुवा होने का दावा करता है। परंतु सत्य यह है कि डॉ. बालकृष्ण गणपत मातापुरकर ने पहले ही शरीर के अंगों का फिर से निर्माण करने की विधि का पेटेंट करवा लिया था...आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह शोध नया नहीं था डॉ. मातापुरकर की प्रेरणा थी महाभारत। कुन्ती को सूर्य जैसा तेजस्वी पुत्र इसी विधि से प्राप्त हुआ था। जब गांधारी, जो दो वर्ष तक गर्भवती नहीं हो पा रही थीं, को इसका पता चला तो उनका गर्भपात हो गया। उनके गर्भ से मांस का एक लोथड़ा निकला। फिर ऋषि द्वैपायन व्यास को बुलाया गया। उन्होंने मांस के लोथड़े को ध्यान से देखा और फिर उसे कुछ विशिष्ट दवाओं के साथ ठंडे पानी की एक टंकी में रखवा दिया। उन्होंने मांस के इस लोथड़े के सौ टुकड़ों किए और उन्हें दो वर्ष तक घी से भरी 100 अलग-अलग टंकियों में रखा। इन टुकड़ों से दो वर्ष बाद सौ कौरवों का जन्म हुआ। यह पढ़ने के बाद उन्हें (मातापुरकर) यह एहसास हुआ कि स्टेमसेल उनकी खोज नहीं है। स्टेमसेल की खोज तो भारत में हज़ारों साल पहले कर ली गई थी’’ (पृष्ठ 92-93)। इस प्रकार, पौराणिक कथाओं को विज्ञान बताया जा रहा है। पौराणिक कहानियां पढ़ने-सुनने में बहुत दिलचस्प लग सकती हैं परंतु इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे कपोलकल्पित हैं। उन्हें सच मानना वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विज्ञान की आत्मा के खिलाफ है। इसी तरह यह भी कहा जाता है कि भारत में प्राचीन काल में टेलीविजन था क्योंकि संजय ने कुरूक्षेत्र से मीलों दूर बैठे हुए व्यास को महाभारत युद्ध का विवरण सुनाया था। यह भी कहा जाता है कि चूंकि राम ने पुष्पक विमान में यात्रा की थी इसलिए प्राचीन भारत में वैमानिकी विज्ञान अस्तित्व में था। हमें यह समझना होगा कि हवाईजहाज बनाने की तकनीक विकसित करने के लिए अनेक वैज्ञानिक सिद्धांतों और उपकरणों की मदद लेनी होती है। इस तरह के वैज्ञानिक सिद्धांतों और उपकरणों का विकास 18वीं सदी के बाद ही शुरू हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्राचीन भारत ने सुश्रुत, चरक और आर्यभट्ट के रूप में दुनिया को उत्कृष्ट वैज्ञानिक दिए। परंतु यह मानना कि हज़ारों साल पहले भी भारत को विज्ञान एवं तकनीकी पर महारथ हासिल थी, स्वयं को महिमामंडित करने का हास्यास्पद प्रयास है। स्वाधीनता आंदोलन के चिंतकों ने वैज्ञानिक समझ और दृष्टिकोण पर बहुत ज़ोर दिया था और यही कारण है कि वैज्ञानिक समझ के विकास को हमारे संविधान में स्थान दिया गया। दूसरी ओर, मुस्लिम राष्ट्रवादी और हिन्दू राष्ट्रवादी, इतिहास को अपने-अपने धर्मों के राजाओं के महिमामंडन के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते रहे। दोनों को लगता था कि उनके धार्मिक ग्रंथों में जो कुछ लिखा है वह अंतिम सत्य है। आज भारत में हिन्दू राष्ट्रवादी सत्ता में हैं। वे पिछले सात दशकों में भारत की वैज्ञानिक प्रगति का मखौल बना रहे हैं और आस्था पर आधारित कपोलकल्पित कथाओं को ज्ञान और विज्ञान बता रहे हैं। यह एक प्रतिगामी कदम है। इस प्रवृत्ति के विरूद्ध, 9 अगस्त को वैज्ञानिकों और तार्किकतावादियों ने सड़कों पर उतर कर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। उनकी मांग थी कि छद्म विज्ञान को शोध व वैज्ञानिक शिक्षण का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। विभिन्न राज्यों में हुए इन प्रदर्शनों में यह मांग भी की गई कि विज्ञान और शिक्षा का बजट बढ़ाया जाए। विज्ञान और छद्म विज्ञान के बीच अंतर बहुत स्पष्ट है। विज्ञान, प्रश्न पूछने और समालोचना को प्रोत्साहन देता है। इसके विपरीत, छद्म विज्ञान केवल आस्था की बात करता है और असहमति को दबाता है। भारत में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ दशकों में जबरदस्त प्रयास हुए हैं। वर्तमान सरकार की नीतियां व कार्यकलाप इस पूरी प्रगति को मिट्टी में मिला देना चाहते हैं। हमें सत्यपाल सिंह जैसे लोगों को नज़रअंदाज़ करते हुए वैज्ञानिक शोध और शिक्षा के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने पर ज़ोर देना चाहिए। (अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)