“ये मंदिर जो बन रहा है वो नाइंसाफ़ी का एक प्रतीक है। झूठ, फ़रेब, साज़िश ये सब हिंदुत्व की राजनीति का एक हिस्सा रहा है चाहे वो बाबरी मस्जिद की बात हो या गांधी के हत्यारे से अपने आप को अलग दिखाने की कोशिश” मस्जिद को मंदिर में कैसे बदला गया, बता रहे हैं लेखक धीरेंद्र के झा -