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December 25, 2020

Hindi ARTICLE- Freedom of Religion Laws- Obstacle to Liberty

मेरा धर्म मुझे चुनने दो स्वतंत्रता पर चोट हैं धर्म स्वातंत्र्य कानून -राम पुनियानी भारत का संविधान हम सब को अपने धर्म में आस्था रखने, उसका आचरण करने और उसका प्रचार करने का हक़ देता है. यदि कोई नागरिक किसी भी धर्म का पालन करना नहीं चाहता तो यह अधिकार भी उसे है. इन दिनों देश एक कठिन दौर से गुज़र रहा है. कोरोना महामरी का तांडव जारी है, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगातार गिरावट आ रही है, देश की माली हालत ख़राब है, महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारों की फौज बड़ी होती जा रही है और किसानों का देशव्याप्ति आन्दोलन चल रहा है. इन विषम परिस्थितियों में भी कुछ राज्य सरकारों की चिंता का सबसे बड़ा विषय है अंतर्धार्मिक विवाह और धर्मपरिवर्तन! ये सरकारें इन विषयों पर कानून बनाने में जुटी हुईं हैं. धर्मपरिवर्तन लम्बे समय से हमारे देश में विवाद और बहस का मुद्दा रहा है. अब उसे अंतर्धार्मिक विवाहों से जोड़ दिया गया है. यह आरोप लगाया जा रहा है कि ऐसे विवाहों का एकमात्र लक्ष्य धर्मपरिवर्तन होता है. भाजपा-शासित प्रदेशों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, धर्मपरिवर्तन करने या करवाने वालों को सजा देने के लिए कानून बना रहे हैं. हिन्दू धर्म के स्व-नियुक्त ठेकेदारों को ‘धर्म रक्षा’ के लिए ऐसे दम्पत्तियों को परेशान करने का लाइसेंस मिल गया है जिन्होंने धर्म की दीवारों को पार कर विवाह किये हैं. धर्मपरिवर्तन - मुख्यतः हिन्दू धर्म को छोड़कर किसी और धर्म जो अपनाना - पर बवाल खड़ा कर दिया गया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने धर्मपरिवर्तन करवाने वाली संस्थाओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया है जिसके अंतर्गत ऐसी संस्थाओं का पंजीयन रद्द हो जायेगा और उन्हें अन्य गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेगें. अध्यादेश के अनुसार, धर्मपरिवर्तन करने या करवाने वालों को स्थानीय प्रशासन को दो महीने पहले नोटिस देना होगा. प्रशासन को यह तय करने का अधिकार होगा कि धर्मपरिवर्तन कानूनी है या गैर-कानूनी. कहने की ज़रुरत नहीं कि यह साबित करने की ज़िम्मेदारी धर्मपरिवर्तन करने और करवाने वालों की होगी कि वे कानून के विरुद्ध कोई काम नहीं कर रहे हैं. इस अध्यादेश में एससी/एसटी व महिलाओं का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. कई अन्य राज्य भी ‘लव जिहाद’ और धर्मपरिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं. ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं जिनमें विवाहित दम्पत्तियों और उनके रिशेदारों को धर्मपरिवर्तन और ‘लव जिहाद’ के नाम पर परेशान किया जा रहा है. जो कानून बनाए जा रहे हैं, उनमें से अधिकांश भारतीय संविधान के मूल प्रावधानों के खिलाफ हैं. स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान आर्य समाज ने ‘शुद्धि आन्दोलन’ शुरू किया था जिसका उद्देश्य था अन्य धर्म अपना चुके हिन्दुओं को उनके पुराने धर्म में वापस लाना. इसी तरह, तबलीगी जमात उस समय तंजीम अभियान चला रही थी जिसका उद्देश्य लोगों को मुसलमान बनने के लिए प्रेरित करना था. बीसवीं सदी का सबसे बड़ा सामूहिक धर्मपरिवर्तन भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में हुआ था. यह घटना हमें धर्मपरिवर्तन के असली कारणों से परिचित करवाती है. अम्बेडकर दलित थे. वे विदेश से अनेक डिग्रीयां लेकर भारत लौटे परन्तु फिर भी उन्हें अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा. वे अछूत ही बने रहे. उन्होंने सामाजिक न्याय और दलितों को गरिमापूर्ण जीवन का हक़ दिलवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी. अंततः वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जातिगत ऊंचनीच के चलते हिन्दू कभी एक राष्ट्र नहीं हो सकते. उन्हें यह समझ में आ गया कि हिन्दू धर्म, ब्राह्मणवादी मूल्यों से संचालित और नियंत्रित है. यही कारण है कि उन्होंने कहा कि “मैंने एक हिन्दू के रूप में जन्म लिया है परन्तु मैं एक हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं.” उनके विशद अध्ययन ने उन्हें बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित किया. उन्होंने अपने तीन लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया. विधि प्राध्यापक समीना दलवाई ने अपने एक लेख में इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि आज जो कानून बन चुके हैं उनके अंतर्गत अम्बेडकर को धर्मपरिवर्तन करवाने के लिए गिरफ्तार कर लिया जाता. हमारे संविधान के निर्माता व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पैरोकार थे और इसमें अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन के अलावा ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास न करने की स्वतंत्रता भी शामिल है. यद्यपि अधिकांश लोग जिस धर्म में जन्म लेते हैं उसी में जीवन भर बने रहते हैं परन्तु अतीत में बड़ी संख्या में लोगों ने अपने धर्म बदले हैं. हमारे देश में इस्लाम, ईसाई धर्म, सिक्ख धर्म और बौद्ध धर्म का प्रसार धर्मपरिवर्तन से ही तो हुआ है. बौद्ध धर्म को तो हिन्दू धर्म के असहिष्णु तबके के हमले का शिकार भी होना पड़ा. यह तबका समानता के उस मूल्य के विरुद्ध था जिसे बौद्ध धर्म प्रतिपादित करता है. जन्म-आधारित असमानता, हिन्दू धर्म के कुछ पंथों का अविभाज्य हिस्सा है और इसे धर्मग्रंथों की स्वीकृति प्राप्त है. इस तरह का उंच-नीच कुछ अन्य धर्मों में भी कुछ हद तक है. आज धर्मपरिवर्तन की राह में अनेक रोड़े खड़े किये जा रहे हैं. परन्तु इतिहास गवाह है कि भारत में बड़े पैमाने पर आमजनों ने इस्लाम और ईसाई धर्म अंगीकार किया. भारत में मुख्यतः दो कारणों से धर्मपरिवर्तन हुए. पहला था, जाति-आधारित दमन. स्वामी विवेकानंद लिखते हैं, “भारत पर मुसलमानों की विजय, गरीबों और पददलितों के लिए मुक्ति बन कर आई. यही कारण है कि हमारे देश के एक बटा पांच लोग मुसलमान बन गए. यह सब तलवार के बल पर नहीं हुआ. यह सोचना मूर्खता की पराकाष्ठा होगी कि यह सब तलवार की नोंक पर हुआ. यह...ज़मींदारों और पुरोहितों की चंगुल से मुक्ति के लिए हुआ. इसी का नतीजा यह है कि बंगाल के किसानों में हिन्दुओं से अधिक मुसलमान हैं क्योंकि यहाँ बहुत से ज़मींदार थे” (सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ स्वामी विवेकानंद, खंड 3, 1979. प्रोलिटेरियट! विन इक्वल राइट्स’ अद्वैत आश्रम, कलकत्ता, 1984 पृष्ठ 16 से उद्दृत). कई मामलों में सामाजिक मेलजोल और आध्यात्मिक सत्य की खोज के चलते भी धर्मपरिवर्तन हुए. कुछ मामलों में विजेता राजाओं ने विजितों पर धर्मपरिवर्तन करने की शर्त भी लाद दी. भारत में बड़ी संख्या में लोगों ने सूफी संतों से प्रभावित होकर इस्लाम अपनाया. इसका दिलचस्प उदाहरण है एक सूफी संत से प्रभावित होकर दिलीप कुमार का ए.आर. रहमान बन जाना. एक अन्य कारक थी ईसाई मिशनरियां. उन्होंने दूर-दराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए काम किया. सन 1999 में पास्टर स्टेंस की धर्मपरिवर्तन करवाने के झूठे आरोप में हत्या कर दी गयी और 2008 में देश में कई स्थानों पर, जिनमें ओडिशा का कंधमाल शामिल है, ईसाई विरोधी हिंसा भड़काई गयी. परन्तु हमें यह भी समझना चाहिए कि सदियों बाद भी भारत में ईसाई, कुल आबादी का 2.3 प्रतिशत ही हैं (जनगणना 2011). ज्ञातव्य है कि भारत में पहले चर्च की स्थापना सेंट थॉमस ने 52 ईस्वी में की थी. राजनैतिक उद्देश्यों से अन्य धर्मों के मानने वालों के हिन्दू धर्म में ‘पुनर्परिवर्तन’ के अभियान भी चलते रहे हैं. आगरा में फुटपाथ पर रहने वालों को बीपीएल और राशन कार्ड का लालच देकर कहा गया था कि वे एक पूजा में आएं और घोषणा करें कि वे अब हिन्दू हैं. गर्म पानी के झरनों में आदिवासियों के नहला कर उनकी ‘घर वापसी’ के प्रयास भी होते रहे हैं. यह इन लोगों को एक बार जातिगत पदक्रम का भाग बनाने की राजनैतिक चाल है. (अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)