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April 03, 2020

Hindi Article: Corona Virus: Religion, God and Science


कोरोनाःईश्वर,धर्म और विज्ञान  इन दिनों पूरीदुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. इससे लड़ने और इसे परास्त करने के लिए विश्वव्यापीमुहिम चल रही है. मानवता एक लंबे समय के बाद इस तरह के खतरे का सामना कर रही है. किसीज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी नहीं की थी कि पूरी दुनिया पर इस तरह की मुसीबत आने वालीहै. सामान्य समयमें जब कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है तो वह या उसे चाहने वालेआराधना स्थलों पर जाकर ईश्वर से उसकी जान बचाने की गुहार लगाते हैं. निःसंदेह वे ईश्वरपर पूरी तरह निर्भर नहीं रहते. वे अस्पतालों में रोगी का इलाज भी कराते हैं. इस समयसभी धर्मों के शीर्ष आराधना स्थलों पर ताले जड़े हुए हैं, चाहे वह वेटिकन हो, मक्का, बालाजी,शिरडी या वैष्णोदेवी. पुरोहित, पादरी और मौलवी,जो लोगों का संदेश ईश्वर तक पहुंचाते हैं, स्वयंको कोरोना से बचाने में लगे हुए हैं और उनके भक्तगण अपनी-अपनी सरकारों की सलाह पर अमलकरने का प्रयास कर रहे हैं. ये सलाहें वैज्ञानिकों और डाक्टरों से विचार-विमर्श परआधारित हैं. सोशल मीडियामें इन दिनों दो दिलचस्प संदेश ट्रेंड कर रहे हैं. एक है, ‘र्साइंस आन डयूटी, रिलीजन आन हालिडे’ (विज्ञान मुस्तैद है, धर्म छुट्टी मना रहा है),दूसरा है ‘गॉड इज़ नाट पावरफुल’ (ईश्वर शक्तिशालीनहीं है). नास्तिकों सहित कुछ ऐसे लेखक, जो अपनी बात खुलकर कहनेसे सकुचाते नहीं हैं, का विचार है कि जब मानवता एक गंभीर संकटके दौर से गुजर रही है उस समय ईश्वर भाग गया है. कई धर्मों का पुरोहित वर्ग श्रद्धालुओंको सलाह दे रहा है कि वे अपने घरों में प्रार्थना करें. अजान हो रही है परंतु वह अबमस्जिद में आने का बुलावा नहीं होती. अब वह खुदा के बंदों को यह याद दिलाती है कि वेअपने घरों में नमाज अता करें. यही बात चर्चों में होने वाले संडे मास और मंदिरों औरअन्य तीर्थस्थानों पर होने वाली पूजाओं और आरतियों के बारे में भी सही है. यहां तककि कुछ भगवानों को मास्क पहना दिए गए हैं ताकि कोरोना से उनकी रक्षा हो सके! ईश्वर के अस्तित्वके संबंध में अनंतकाल से बहस होती रही है. कहा जाता है कि ईश्वर इस दुनिया का निर्माताऔर रक्षक है. फिर,क्या कारण है कि इस कठिन समय में पुरोहित वर्ग दूर से तमाशा देख रहाहै. कुछ बाबा अस्पष्ट सलाहें दे रहे हैं. एक बाबा, जिन्हें उनके अनुयायी भगवान मानतेथे और जो अब जेल में हैं, इस आधार पर जमानत चाह रहे हैं कि जेल में उन्हें कोरोना काखतरा है. अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह दुनिया को इस मुसीबत से क्यों नहीं बचा रहाहै? क्या कारण है कि इस जानलेवा वायरस से मानवता की रक्षा करनेका भार केवल विज्ञान के कंधों पर है?इतिहास गवाहहै कि विज्ञान को अपने सिद्धांतों को स्थापित करने के लिए लंबा और कठिन संघर्ष करनापड़ा है. पुरोहित वर्ग हमेशा से विज्ञान के विरोध में खड़ा  रहा है. रोमन कैथोलिक चर्च, जो कि दुनिया का सबसे संगठित पुरोहित वर्ग है, वैज्ञानिक खोजों और वैज्ञानिकोंका विरोधी रहा है. कापरनिकस से लेकर गैलिलियो तक सभी को चर्च के कोप का शिकार बननापड़ा. अन्य धर्मों का पुरोहित वर्ग इतना संगठित नहीं है. इस्लाम में आधिकारिक रूप सेपुरोहित वर्ग के लिए कोई जगह नहीं है परंतु वहां भी यह वर्ग है. सभी धर्मों के पुरोहितवर्ग हमेशा शासकों के पिट्ठू और सामाजिक रिश्तों में यथास्थितिवाद के पोषक रहे हैं.पुरोहित वर्ग ने कभी वर्ग, नस्ल व लिंग के आधार पर भेदभाव काविरोध नहीं किया. पुरोहित वर्ग ने हमेशा राजाओं और जमींदारों को ईश्वर का प्रतिरूपबताया ताकि लोग इन भगवानों के लिए कमरतोड़ मेहनत करते रहें और इसके बाद भी कोई शिकायतन करें. पुरोहित वर्ग का यह दावा रहा है कि धार्मिक ग्रंथों में जो कुछ लिखा है वहसटीक, अचूक और परम सत्य है जिसे  चुनौती नहींदी जा सकती. उत्पादन केवैज्ञानिक साधनों के विकास से दुनिया में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ. इस क्रांतिके बाद पुरोहित वर्ग ने भी अपनी भूमिका बदल ली. औद्योगिक युग में भी वे प्रासंगिक औरमहत्वपूर्ण बने रहे. इस वर्ग का जोर कर्मकांडों पर रहा और ईश्वर के कथित वास स्थलोंको महत्वपूर्ण और पवित्र बताने में उसने कभी कोई कसर बाकी नहीं रखी. ये सभी तर्कउचित और सही हैं परंतु धर्म के आलोचकों द्वारा धर्म के एक महत्वपूर्ण पक्ष को नजरअंदाजकिया जा रहा है. और वह यह है कि सभी धर्मों के पैगंबर अपने काल के क्रांतिकारी रहेहैं और उन्होंने प्रेम व करूणा जैसे मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित किया है. आखिर भक्तिऔर सूफी संत भी धर्म का हिस्सा थे परंतु उन्होंने शोषणकारी व्यवस्था का विरोध कियाऔर समाज में सद्भाव और शांति को बढ़ावा दिया. धर्म का एक और पक्ष महत्वपूर्ण है और वहयह कि धर्म इस क्रूर और पत्थर दिल दुनिया में कष्ट और परेशानियां भोग रहे लोगों कासंबल होता है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कई धर्मों जैसे बौद्ध धर्म में ईश्वरकी अवधारणा नहीं है. परालौकिक शक्तिकी अवधारणा भी समय के साथ बदलती रही है. आदि मानव प्रकृति पूजक था. फिर बहुदेववाद आया.उसके बाद एकेश्वरवाद और फिर आई निराकार ईश्वर की अवधारणा. नास्तिकता भी मानव इतिहासका हिस्सा रही है. भारत में चार्वाक से लेकर भगतसिंह और पेरियार जैसे विख्यात नास्तिकहुए हैं. धर्म का उपयोग बादशाहों और सम्राटों द्वारा अपने साम्राज्यवादी मंसूबों कोपूरा करने के लिए किया जाता रहा है. धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद, दरअसल, शासकों केअपने साम्राज्यों की सीमा को विस्तार देने के उपक्रम के अलग-अलग नाम हैं. आज की दुनियामें भी धर्म का इस्तेमाल राष्ट्रों द्वारा अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कियाजा रहा है. दुनिया के कच्चे तेल के संसाधनों पर कब्जा करने की अपनी लिप्सा के चलतेअमरीका ने पहले अल्कायदा को खड़ा किया. अल्कायदा आज ‘म्यूटेट’ होकर इस्लामिक स्टेट बनचुका है और भस्मासुर साबित हो रहा है. अमरीका ने अल्कायदा को 800 करोड़ डालर और 7,000 टन हथियारउपलब्ध करवाए और अब वह ऐसा व्यवहार कर रहा है मानो आईएस की आतंकी गतिविधियों से उसकाकोई लेनादेना नहीं है. आज धर्म केनाम पर राजनीति भी की जा रही है. चाहे कट्टरवादी, मुसलमान हों, ईसाई हों अथवा हिन्दूया बौद्ध, उन्हें धर्मों के नैतिक मूल्यों से कोई मतलब नहीं है. वे दुनिया को लैंगिकऔर सामाजिक ऊँचनीच के अंधेरे युग में वापिस ढ़केलना चाहते हैं. भारत में हिन्दू धर्मके नाम पर राजनीति करने वालों में हिन्दुत्ववादी अग्रणी हैं. वे कहते हैं कि चाहे प्लास्टिकसर्जरी हो या जैनेटिक इंजीनियरिंग, चाहे हवाईजहाज हों या इंटरनेट, प्राचीन भारत मेंवे सब थे. यहां तक कि न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धांत भी हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियोंको ज्ञात था! हम केवलउम्मीद कर सकते हैं कि हमारी सरकारों, वैज्ञानिकों और डाक्टरों की मदद से हमारी दुनियाकोरोना के कहर से निपट सकेगी. हमें यह भी उम्मीद है कि मानवता पर आई यह आपदा हमें अधिकतार्किक बनाएगी और हम अंधविश्वास और अंधश्रद्धा पर विजय प्राप्त करेंगे. (हिंदीरूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)